हमें अपमानित करने वाले को सबक सिखाने के क्या तरीके हो सकते हैं?

Motivational Thought


अंकल जी ने मुझे वह स्टोरी  कुछ इस तरह बताई थी:- मैं एक बार बहुत बड़े मिष्ठान भण्डार पर रसगुल्ले खरीदने गया। उसने मुझे एक पन्नी में रसगुल्ले डाल कर पकड़ा दिए। उन दिनों चीनी कुछ ज्यादा ही महंगी थी इसलिए उसने इसमें चाश्नी की दो ही बूंदें डाली। यह ऊंची दूकान , फीका पकवान देख कर मेरे तो दिमाग का फ्यूज़ ही उड़ गया।


( आगे बढ़ने से पहले बता दूं कि यह दूकान के एक जाति-विशेष के नाम पर है। नाम लूंगा तो उस जाति के लोग बुरा मान जाएंगे इसलिए पूरी घटना में जाति का नाम और उससे जुड़ा काम खुद पर ही जोड़ देता हूँ। मैं ब्राह्मण जाति से हूं तो हम इसे ' शर्मा स्वीट्स ' कह कर काम चला लेते हैं। )


तो मैंने पन्नी हाथ में पकड़ी और पैसे देने की बजाए कहा " भाई साहब , मैंने तो रसगुल्ले मांगे थे। "


उसने नाक फुला कर कहा " नेत्र खोल कर देखिए , रसगुल्ले ही दिए हैं। "


मैंने पन्नी उसके सामने लहराई " भैया जी , गुल्ले ही गुल्ले हैं , रस नहीं है। "


उसमें थोड़ी सी भी अक्ल होती तो आधा कड़छी चाशनी डाल देता और बात खत्म हो जाती लेकिन जब मैंने बताया कि रस नहीं है तो उसने मुंह बिचका कर कहा " आजकल कोई ढंग का आदमी रस पीता भी है ? "

मैंने कहा " हां भाई , ढंग का आदमी तो रस से दूर ही रहता है लेकिन मैं खुद के लिए नहीं ले जा रहा। घर में पंडित जी हवन करने आए हुए हैं और उन्होंने कहा था आजकल के घटिया हलवाई चाश्नी कम डालते हैं , तो कह कर डलवा लेना। "

उसे तुरंत समझ आ गई कि सामने तो एक तीर से दो शिकार करने वाले चाचा जी खड़े हैं। झेंप गया और एक की बजाए दो कड़छी चाशनी डाल दी।

तो मुझे तो झण्ड करने का यही तरीका सही लगता है कि पत्थर को फूल में लपेट कर मारो। फिर वह रो भी नहीं सकता और सो भी नहीं सकता।


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